तलाक होने के बाद भी पत्नी का हक़ है गुजारा-भत्ता
भारतीय कानून व्यवस्था में महिलाओ के हितो में कई महत्वपूर्ण कानून आये, और उनका भरपूर फायदा महिलाओ द्वारा लिया गया, इन्ही में से एक कानून है गुजारा-भत्ता व भरण-पोषण कानून जो की महिलाओं के लिए एक उपयोगी कानून है, जिसके तहत जब महिला के पति द्वारा महिला को प्रताड़ित किया जाता है, या अलग रहने के लिए मजबूर किया जाता है, तो इस स्थति में महिला सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारे-भत्ते की अपील कर सकती है | लोगो के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि तलाक के बाद भी पत्नी गुजारे-भत्ते की हकदार है, जिसका समाधान हमारे द्वारा लिखित रूप में दिया गया है, इसके तहत महिला अपने पति से तलाक होने के बाद भी गुजारे-भत्ते की मांग कर सकती है, यदि पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर झगडा हो जाए और पत्नी पति से अलग रहने लगे और वह अपने और अपने बच्चों का खर्चा चलाने में असमर्थ हो, तो वह सीआरपीसी की धारा-125,और हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट की धारा 18 के तहत गुजारे-भत्ते के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकती है बशर्ते कि महिला ने किसी दुसरे पुरुष के साथ पुनर्विवाह नहीं किया हो,या महिला का पति बिना किसी युक्तियुक्त कारण के उससे अलग रह रहा हो आदि |
तलाक की परिस्थितियो का आधार || Ground of divorce
तलाक की परिस्थितियो के प्रमुख आधार है, जिसके तहत पति ने पत्नी का परित्याग कर दिया हो या उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करता हो, और इस प्रकार उसे अलग रहने के लिए मजबूर कर दिया हो या पति ने दूसरी शादी कर ली हो या किसी रखेल के साथ रहता हो और अगर पति किसी संक्रामक रोग से पीड़ित हो या उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो, इन परिस्थितियों में महिला अपने पति से तलाक के लिए एवं गुजारे भत्ते के लिए कोर्ट से गुहार लगा सकती है, और विवाह-विच्छेद की डिक्री के पश्चात भी पुनः विवाह ना होने तक गुजारा-भत्ता प्राप्त कर सकती है |
सीआरपीसी की धारा-125 से सम्बंधित अलग-अलग मामले निम्नलिखित है जिन पर न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण फैसले लिए गये
सावित्री पांडे बनाम न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय इलाहाबाद 2004 क्री.ला ज. 3934(इलाहाबाद)
इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने निर्धारित किया की यदि पत्नी ने परिस्थतिवश पति का घर छोड़ दिया है, और उसने पुनः विवाह कर लिया है तो उसे केवल दुसरे विवाह की तारीख तक ही अपने पूर्व पति से भरण पोषण की राशि प्राप्त करने का अधिकार था |
संजू देवी बनाम बिहार राज्य (6 दिसम्बर 2017)
इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपने पति से गुजारे-भत्ते की मांग के लिए उच्च न्यायालय से गुहार लगाई, जिसके तहत कोर्ट ने यह मामला ख़ारिज कर दिया, कोर्ट ने कहा की सीआरपीसी की धारा-125(4) के तहत बिना किसी कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है, या पति पत्नी आपसी सहमती से अलग रह रहे है, इन परिस्थितियों में पत्नी गुजारा-भत्ता पाने की हक़दार नहीं है |
डॉ. रणजीत कुमार भट्टाचार्य बनाम श्रीमती सविता भट्टाचार्य
यह एक महत्वपूर्ण वाद है जिसके अंतर्गत एक इसाई धर्म केnव्यक्ति ने हिन्दू महिला को अपनी विवाहित पत्नी बताते हुए वर्षो तक अपने पास रखा, इनकी एक संतान भी हुई, फिर आगे चलकर उनके बीच कलह-कलेश की स्थति उत्पन्न हुई, जिसके कारण महिला ने कोर्ट में भरण पोषण की मांग की, जिसके तहत न्यायालय ने इस अपील को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि वह उस व्यक्ति की विवाहिता पत्नी नहीं है, लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उस महिला को तथाकथित पति से 30000 रूपये की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में दिलवाई, क्योकि उस व्यक्ति द्वारा उस महिला के साथ छल किया गया था , इसलिए उच्चतम न्यायालय द्वारा इस फैसले को न्यायोचित ठहराया गया |
अतः उक्त मामलो से यह निर्धारित है कि यह कानून पूरी तरह न्यायोचित है, पति पत्नी के बीच हुए कलह-कलेश के कारण परिस्थितिया तलाक का रूप ले लेती है, जिसके तहत कुछ महिलाये अपना एवं अपने बच्चो का भरण-पोषण करने में असमर्थ होती है, तो ऐसी स्थति में पीड़ित महिलाये इस कानून का सहारा लेकर खुदको सुरक्षित कर सकती है |