FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट)
F.I.R (प्रथम सूचना रिपोर्ट) से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी आपको दी जा रही है , जिसकी जानकारी प्रत्येकव्यक्ति को होना आवश्यक है, मेरा यह लेख FIR और उससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी से संबंधित है, जिन्हें मेरे द्वारा निम्नलिखित रूप से समझया जा रहा है I
नोट : दी गयी जानकारी में कोई दोष हो या आपका कोई सवाल हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर दे I
F.I.R (First Information Report) पुलिस अधिकारी के समक्ष कैसे दे :-
FIR जिसे फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट भी कहा जाता है जो कि किसी अपराध के बारे में पुलिस को दी गई सर्वप्रथम सूचना होती है, FIR लिखित में या मौखिक में भी दर्ज करवा सकते हैं लेकिन ध्यान रहे यदि आपने FIR मौखिक में दर्ज करवाई है तो पुलिस अधिकारी आपको मौखिक रूप से दर्ज करवाई गई FIR को सुनाएगा और इसके पश्चात आप उस FIR पर अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं I
ध्यान रहे FIR किसी भी अपराध के घटित होने के तुरंत पश्चात दर्ज करवाई जानी चाहिए क्योंकि पुलिस किसी भी अपराध के बारे में जाँच पड़ताल (अन्वेषण) पुलिस थाने में FIR दर्ज होने के पश्चात ही शुरु करती है, अतः FIR बिना किसी विलंब के दर्ज करवाई जानी चाहिए I
F.I.R (First Information Report) किसके द्वारा दर्ज की जा सकती है:-
FIR पीड़ित या फिर पीड़ित के किसी भी जानकार या फिर किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है एवं पुलिस कर्मी किसी भी रुप में आपकी शिकायतों को सुनने एवं उसे दर्ज करने से मना नहीं कर सकते I
F.I.R (First Information Report) पुलिस अधिकारी द्वारा FIR दर्ज नहीं करने पर की जाने वाली कार्यवाही :-
अक्सर यह देखा जाता है कि पुलिस अपने एरिया में क्रिमिनल रिकॉर्ड कम दिखाने के चक्कर में FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है, ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति अपने एरिया के ASP या DSP या थाना प्रभारी को अपनी शिकायत लिखित में भी दे सकते हैं, और इसके बाद संबंधित अधिकारी आपकी FIR दर्ज करने का आदेश देता है, और यदि इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की जाती है तब आप अपने एरिया के संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद पेश कर सकते हैं जिस पर मजिस्ट्रेट आपके मामले में जांच का आदेश दे सकता है I
ध्यान रहे पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकता उसे FIR दर्ज करनी ही होती है और यदि कोई पुलिस अधिकारी FIR दर्ज नहीं करता है तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 166A के तहत अपराध करता है I
F.I.R (First Information Report) गलत या झूठी दर्ज करवाने पर कार्यवाही :-
यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि यदि कोई व्यक्ति झूठी FIR दर्ज करवाता है तो वह है भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के तहत दंडनीय अपराध करता है, और धारा 182 के तहत ऐसी झूठी FIR दर्ज करवाने वाले व्यक्ति को 6 महीने की सजा या जुर्माना जो कि 1000/- रुपये तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जा सकता है I
यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी से गिरफ्तार कराता है और तब ऐसे मामले का विचारण करने वाले मजिस्ट्रेट को यह लगता है कि ऐसी गिरफ्तारी का पर्याप्त कारण नहीं था तब मजिस्ट्रेट द्वारा उस व्यक्ति को जिसे पुलिस गिरफ्तार करती है 1000/- रुपये तक प्रतिकर उस व्यक्ति से दिलवाएगा जो उसे गिरफ्तार कराता है I (धारा 358 दंड प्रक्रिया संहिता)
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