यह एक गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न है, जिसका जवाब हां है | आपराधिक मामलो में शिकायत करने की समय सीमा निर्धारित ना हो तो मामलो का ढेर लग जायेगा, जिससे की मामलो को सुलझाना और भी कठिन हो जायेगा, अपराधो की परिसीमा काल का लेखा जोखा दण्ड प्रक्रिया संहिंता 1973 के अध्याय 36 की धारा 468 में दिया हुआ है जिसके अनुसार अपराधो की कितनी समय सीमा के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेना चाहिए, इसकी जानकारी दी गयी है|
कुछ मामलों की समय सीमा अपराध घटित होने के दिन से शुरू हो जाती है, जबकि कुछ मामलो में पीड़ित को अपराध की जानकारी बहुत दिनों बाद होती है, जिससे की शिकायतकर्ता क़ानूनी कार्यवाही करने में असक्षम रह जाता है, और समय सीमा समाप्त हो जाती है, ऐसे मामलो में जिस दिन वह पुलिस को अपराध के बारे में जानकारी देगा, वह दिन समय सीमा का पहला दिन माना जाएगा, किसी अपराध की समय सीमा का क्या आधार है, इसकी जानकारी दण्ड प्रक्रिया संहिंता 1973 के अध्याय 36 की धारा 469 में दिया हुआ है|
समाधान:-यदि शिकायतकर्ता अपराधो की समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद क़ानूनी कार्यवाही शुरू करे तो यह कानून में तब मान्य होगा, जब शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट को समय निकलने का कारण समझाने में सफल हो जाए, कि उसने कार्यवाही शिकायत करने की समय सीमा में क्यों नहीं की, अगर मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता का कारण उचित लगता है, तो दण्ड प्रक्रिया संहिंता 1973 की धारा 473 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को क़ानूनी कार्यवाही के आवेदन को मान्य करने की पॉवर है|
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