Tripal Talaq in hindi:– इस्लाम में तीन तलाक एक स्त्री के जीवन की नींव को पल भर में हिला देने वाला एक गंभीर मुद्दा है। जैसा कि इस्लाम में निकाह दो लोगों के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट (संविदा) है, लेकिन इसमें स्त्री और पुरुष दोनों की रजामंदी जरूरी होती है और निकाह के लिए कम से कम दो गवाहों की मौजूदगी जरूरी होती है, तो तालाक का फैसला एक अकेला व्यक्ति(पुरुष) कैसे ले सकता है, यानी तलाक अकेले में, मजाक में जरिये ई-मेल या वॉट्सएप या फेसबुक पर बिना गवाह और वकील के कैसे जायज हो सकता है? जो शब्द एक औरत की हंसती हुई जिंदगी को पल भर में एक जिंदा लाश में बदल दे, ऐसे शख्स को यकीनन सजा मिलनी चाहिए।
तीन तलाक की प्रथा को ख़तम करने का मामला शायरा बानो और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, 2016 की रिट याचिका (C) संख्या 118 का है, जिसमे मुस्लिम महिला सायरा बानो को उनके पति ने टेलीग्राम के जरिये तीन तालाक दे दिया जिससे पीड़ित होकर सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला को संवैधानिक चुनौती दी थी। साथ ही, उनकी याचिका में मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा को भी गलत बताते हुए उसे खत्म करनी की मांग की गई थी। सर्वोच्च न्यायलय द्वारा तीन तलाक प्रथा को संविधान के Article 14 और Article 15 व 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है।
अतः सरकार द्वारा तीन तलाक जेसी कुप्रथाओ से विवाहित मुस्लिम महिलाओ के अधिकारों की रक्षा के हेतु मुस्लिम विमिन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल 2018 लाया गया है, जिसे The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) act, 2018 के नाम से जाना जायेगा, यह एक्ट 19 सितम्बर 2018 से प्रभाव में है, जिसमे कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों का उल्लेख निम्नलिखित किया गया है –
यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उद्घोषणा शून्य और अवैध होगी। इस प्रावधान के तहत तीन तलाक के मामले को सिविल श्रेणी से हटाकर क्रिमिनल में ड़ाल दिया गया है|
नये कानून की Section 3 के अनुसार यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है, तो ऐसा करने वाले आरोपी को इस अधिनियम के तहत तीन साल तक की सजा एवं जुर्माना दोनों का प्रावधान है|
पुराने कानून में मुस्लिम महिलाओ के लिए गुजारे-भत्ते का कानून नहीं था लेकिन नये कानून की Section 5 के अनुसार पीड़ित मुस्लिम महिला पति से गुजारा-भत्ते की मांग कर सकती है, इसकी रकम मजिस्ट्रेट तय करेगा।
उपरोक्त गुजारे-भत्ते के कानून का आधार मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (AIR 1985 SC 945) का मामला है, जिसमे शाह बानो एक मुस्लिम महिला थीं उनके पति ने जब उन्हें तलाक दिया तब उनकी उम्र 60 वर्ष से ज्यादा हो चुकी थी इस उम्र में शाह बानो के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था, उनके पांच बच्चे थे, उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से भरण पोषण भत्ता दिए जाने की मांग की, न्यायालय ने शाह बानो के पक्ष में फैसला दिया
नए कानून की धारा 7 के तहत तीन तलाक का मामला संज्ञेय अपराध है, इस अपराध की शिकायत महिला या फिर उसके सगे-संबंधी द्वारा की जा सकती है, पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है। इस बिल के तहत मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है। लेकिन जमानत तभी दी जाएगी, जब पीडि़त महिला का पक्ष सुना जाएगा। यह कानून सिर्फ तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा।
नये कानून के तहत पीड़ित मुस्लिम महिला अपने नाबालिग़ बच्चो की कस्टडी पाने की हकदार है। कस्टडी का तरीका मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
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The new law of triple talaq is completly justificable and fair for the right of muslim womens